Type Here to Get Search Results !

हिंदू अव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अंतर्गत नैसर्गिक संरक्षक

 

हिंदू अव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अंतर्गत नैसर्गिक संरक्षक

हिंदू अव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अंतर्गत नैसर्गिक संरक्षक

Table of Content (toc)

प्रस्तावना

हिंदू अव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Guardianship Act, 1956) एक विशेष अधिनियम है जो अव्यस्क (Minor) बच्चों के अधिकारों की रक्षा तथा उनके संरक्षक (Guardian) की शक्तियों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है। इसमें अव्यस्क की परिभाषा, नैसर्गिक संरक्षक की स्थिति और उनकी शक्तियों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।


अव्यस्क कौन है? (धारा 4)

धारा 4(a) के अनुसार, “अव्यस्क” वह व्यक्ति है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है।
अर्थात, भारत में हिंदू अव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु का होने पर अव्यस्क माना जाएगा।


नैसर्गिक संरक्षक की शक्तियाँ (धारा 8)

धारा 8 में नैसर्गिक संरक्षक की शक्तियों और सीमाओं का उल्लेख किया गया है।

(1) सामान्य शक्तियाँ

नैसर्गिक संरक्षक, अव्यस्क के हित तथा उसकी संपत्ति के लाभ के लिए सभी आवश्यक, उचित और तर्कसंगत कार्य कर सकता है।
⚠️ लेकिन संरक्षक किसी भी स्थिति में अव्यस्क को व्यक्तिगत वचन (personal covenant) से बाध्य नहीं कर सकता।


(2) न्यायालय की अनुमति के बिना निषिद्ध कार्य

नैसर्गिक संरक्षक न्यायालय की अनुमति लिए बिना निम्न कार्य नहीं कर सकता—

(a) अव्यस्क की अचल संपत्ति का बंधक (mortgage), भार (charge), विक्रय (sale), उपहार (gift), विनिमय (exchange) या अन्य किसी प्रकार से हस्तांतरण।

(b) किसी अचल संपत्ति को 5 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए पट्टे (lease) पर देना या ऐसी अवधि के लिए पट्टे पर देना जो अव्यस्क की वयस्कता (majority) की आयु पूरी होने के बाद 1 वर्ष से अधिक बढ़े।


(3) उल्लंघन के परिणाम

यदि संरक्षक उपरोक्त उपबंधों का उल्लंघन करता है, तो ऐसा लेन-देन अव्यस्क के विकल्प पर निरस्त करने योग्य (voidable) होगा। अर्थात अव्यस्क या उसके उत्तराधिकारी चाहें तो उस लेन-देन को रद्द करा सकते हैं।


(4) न्यायालय की अनुमति कब दी जाएगी?

न्यायालय उपरोक्त कार्यों की अनुमति केवल तभी देगा जब—

  • वास्तविक आवश्यकता हो, या

  • अव्यस्क के हित में स्पष्ट लाभ (evident advantage) हो।


(5) अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 का अनुप्रयोग

न्यायालय से अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया Guardians and Wards Act, 1890 के समान होगी।
विशेष रूप से—
(a) यह कार्यवाही उस अधिनियम के अंतर्गत मानी जाएगी।
(b) न्यायालय को उसी प्रकार की शक्तियाँ और प्रक्रिया प्राप्त होगी।
(c) यदि न्यायालय अनुमति देने से इनकार करता है तो उस आदेश के विरुद्ध अपील (appeal) भी की जा सकती है।


(6) “न्यायालय” की परिभाषा

इस धारा के लिए “न्यायालय” का अर्थ है—

  • सिटी सिविल कोर्ट, या

  • जिला न्यायालय, या

  • अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 की धारा 4A के अंतर्गत सशक्त न्यायालय।

यदि संपत्ति एक से अधिक न्यायालयों की अधिकारिता में आती है तो उस स्थिति में वह न्यायालय सक्षम होगा जिसकी क्षेत्राधिकार में संपत्ति का कोई भाग स्थित है।


महत्वपूर्ण न्यायालयीन दृष्टांत (Case Laws)

1. Githa Hariharan v. Reserve Bank of India (1999) 2 SCC 228

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि माता भी नैसर्गिक संरक्षक हो सकती है। यदि पिता जीवित है लेकिन बच्चे की देखभाल नहीं कर पा रहा है तो माता संरक्षक के रूप में कार्य कर सकती है।

2. Manik Chand v. Ramchandra (AIR 1981 SC 519)

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नैसर्गिक संरक्षक द्वारा संपत्ति का कोई भी अनुचित लेन-देन अव्यस्क द्वारा रद्द किया जा सकता है।

3. Smt. Sarla Mudgal v. Union of India (1995) 3 SCC 635

इस मामले में व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया और संरक्षकता से संबंधित प्रावधानों को भी सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से देखा गया।


निष्कर्ष

हिंदू अव्यस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 का उद्देश्य अव्यस्कों के हितों की रक्षा करना है। नैसर्गिक संरक्षक के पास व्यापक शक्तियाँ हैं, लेकिन वे पूर्ण नहीं हैं। न्यायालय की अनुमति के बिना अचल संपत्ति से संबंधित कुछ कार्य नहीं किए जा सकते।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों ने यह स्पष्ट किया है कि इस अधिनियम का उद्देश्य अव्यस्क के सर्वोत्तम हित (Best Interest of Minor) की सुरक्षा करना है।


सामान्य प्रश्न (FAQs)

Q1. नैसर्गिक संरक्षक कौन होता है?
👉 वह व्यक्ति जो अव्यस्क की देखभाल तथा संपत्ति की रक्षा का प्राकृतिक अधिकार रखता है। जैसे—पिता, माता।

Q2. अव्यस्क की परिभाषा क्या है?
👉 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति।

Q3. क्या नैसर्गिक संरक्षक अव्यस्क की संपत्ति बेच सकता है?
👉 हाँ, लेकिन केवल न्यायालय की अनुमति से और तभी जब यह अव्यस्क के हित में हो।

Q4. क्या माता नैसर्गिक संरक्षक हो सकती है?
👉 हाँ, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि यदि पिता उपलब्ध नहीं है या देखभाल नहीं कर पा रहा है तो माता संरक्षक होगी।

Q5. यदि नैसर्गिक संरक्षक न्यायालय की अनुमति के बिना संपत्ति का लेन-देन कर दे तो क्या होगा?
👉 ऐसा लेन-देन अव्यस्क के विकल्प पर निरस्त करने योग्य (voidable) होगा।

Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Ads Area