अपराधियों का परिवीक्षा अधिनियम, 1958 – सम्पूर्ण विवरण
प्रस्तावना
भारतीय विधि व्यवस्था केवल दंड देने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य अपराधियों को सुधारना भी है।
परिवीक्षा अधिनियम, 1958 ऐसे अपराधियों को दूसरा मौका देता है जो पहली बार या मामूली अपराध करते हैं ताकि वे जेल जाने के बजाय अच्छे आचरण द्वारा समाज में पुनः स्थापित हो सकें।
यह अधिनियम सुधारात्मक दंड सिद्धांत (Reformative Theory of Punishment) और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की भावना को सशक्त बनाता है।
अधिनियम के उद्देश्य
अपराधियों का सुधार और पुनर्वास करना
पहली बार अपराध करने वालों को जेल से बचाना
युवाओं को अपराधी प्रवृत्ति से रोकना
जेलों में भीड़ घटाना और समाज में सुधार को बढ़ावा देना
प्रमुख धाराएँ और प्रावधान
🔹 धारा 3 – चेतावनी देकर रिहाई (Release after Admonition)
यदि अपराध छोटा है और अपराधी पश्चाताप दिखाता है, तो न्यायालय सिर्फ चेतावनी देकर रिहा कर सकता है।
जैसे — सार्वजनिक उपद्रव या छोटे स्तर की चोरी के मामलों में।
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🔹 धारा 4 – अच्छे आचरण पर रिहाई (Release on Probation of Good Conduct)
न्यायालय अपराधी को सदाचार की शर्त पर बांड (bond) पर रिहा कर सकता है।
इस अवधि (1–3 वर्ष तक) के दौरान अपराधी को:
अच्छा आचरण बनाए रखना होगा,
और परिवीक्षा अधिकारी (Probation Officer) से संपर्क में रहना होगा।
यदि अपराधी अच्छा आचरण रखता है → दंड समाप्त।
यदि उल्लंघन करता है → मूल अपराध के लिए सज़ा दी जा सकती है।
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🔹 धारा 5 – क्षतिपूर्ति और खर्च का भुगतान
परिवीक्षा पर रिहाई के साथ न्यायालय अपराधी को आदेश दे सकता है कि वह:
पीड़ित को क्षतिपूर्ति (compensation) दे,
तथा न्यायिक खर्च (costs of proceedings) का भुगतान करे।
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🔹 धारा 6 – 21 वर्ष से कम आयु के अपराधियों के लिए विशेष प्रावधान
यदि अपराधी की आयु 21 वर्ष से कम है, तो न्यायालय उसे जेल नहीं भेज सकता जब तक कि वह यह न कहे कि परिवीक्षा देना उचित नहीं है।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि युवा अपराधियों को सुधारने का अवसर मिले।
🔹 धारा 7 – परिवीक्षा आदेश में संशोधन या रद्द करना
यदि अपराधी बांड की शर्तों का उल्लंघन करता है या अन्य कारण उत्पन्न होते हैं, तो न्यायालय परिवीक्षा आदेश में संशोधन या रद्द कर सकता है।
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🔹 धारा 8 – परिवीक्षा अधिकारी के कर्तव्य
परिवीक्षा अधिकारी का कार्य
अपराधी के आचरण की निगरानी करना,
उसे सुधारात्मक सलाह देना,
और न्यायालय को रिपोर्ट देना।
वे अपराधी और न्यायालय के बीच सुधारात्मक सेतु (bridge) के रूप में कार्य करते ह
परिवीक्षा आमतौर
हत्या, बलात्कार, डकैती आदि
आदतन अपराधियों (habitual offenders) को
या जहाँ सार्वजनिक सुरक्षा पर खतरा हो
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🏛️ प्रमुख न्यायिक निर्णय (Leading Case Laws)
🧑⚖️ 1. रतन लाल बनाम पंजाब राज्य (AIR 1965 SC 444)
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम सुधारात्मक प्रकृति का है और युवा या पहली बार अपराध करने वालों पर उदारतापूर्वक लागू किया जाना चाहिए।
🧑⚖️ 2. राम सिंह बनाम हरियाणा राज्य (AIR 1971 SC 1727)
न्यायालय ने कहा कि परिवीक्षा का उद्देश्य छोटे अपराधियों को कठोर अपराधियों में बदलने से रोकना है।
🧑⚖️ 3. धरमबीर बनाम हरियाणा राज्य (2013) 14 SCC 598
न्यायालय ने कहा कि दोषसिद्धि के बाद भी न्यायालय उपयुक्त परिस्थिति में अपराधी को परिवीक्षा पर रिहा कर सकता है।
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🌱 परिवीक्षा अधिनियम के लाभ
✅ जेलों में भीड़ कम होती है
✅ अपराधी समाज में पुनः स्थापित हो सकता है
✅ पहली बार अपराध करने वालों को सुधार का अवसर
✅ दंड व्यवस्था में मानवीय दृष्टिकोण
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📊 संक्षिप्त सारणी
धारा. विषय सार
3 चेतावनी देकर रिहाई छोटे अपराधों में केवल चेतावनी
4 अच्छे आचरण पर रिहाई सदाचार पर बांड के साथ रिहाई
5 क्षतिपूर्ति और खर्च पीड़ित को भुगतान
6 21 वर्ष से कम अपराधी जेल से बचाव
7 आदेश में संशोधन बांड उल्लंघन पर संशोधन
8 अधिकारी के कर्तव्य निगरानी और रिपोर्टिंग
निष्कर्ष
अपराधियों का परिवीक्षा अधिनियम, 1958 भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था का एक प्रगतिशील कानून है जो मानवीयता और सुधार की भावना को दर्शाता है।
यह मानता है कि हर अपराधी को दंडित करने के बजाय उसे सुधारने का अवसर मिलना चाहिए।
जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है —
“दंड का उद्देश्य प्रतिशोध नहीं, बल्कि व्यक्ति का सुधार और समाज की सुरक्षा है।”
