प्रस्तावना
"मात्र कार्य किसी को अपराधी नहीं बनाता यदि उसका मन अपराधी न हो" — यह प्रसिद्ध उक्ति actus non facit reum nisi mens sit rea आपराधिक न्याय प्रणाली की नींव मानी जाती है। इसका तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि उसने अपराध करने का आशय या दुराशय न रखा हो।
भारतीय दंड संहिता (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023) में अधिकांश अपराधों की रचना इसी मानसिक तत्व यानी Mens Rea के आधार पर की गई है। इस लेख में हम इस सिद्धांत की उत्पत्ति, व्याख्या, न्यायिक दृष्टिकोण, और BNS 2023 के सन्दर्भ में विश्लेषण करेंगे।
Mens Rea की परिभाषा और व्याख्या
Mens Rea लैटिन शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "दोषपूर्ण मानसिक अवस्था" या "अपराधिक मनःस्थिति"। किसी अपराध की सिद्धि के लिए केवल शारीरिक कार्य (Actus Reus) पर्याप्त नहीं होता, जब तक कि उसके साथ मानसिक आशय (Mens Rea) न जुड़ा हो।
Stephen के अनुसार, "Mens Rea वह इच्छा है जो किसी विशेष कृत्य की दिशा तय करती है।"
Austin के अनुसार, "Mens Rea वह उद्देश्य या प्रयोजन है जिसके अंतर्गत कोई कार्य किया जाता है।"
Mens Rea के प्रकार
Mens Rea के विभिन्न स्तर होते हैं, जो अपराध की गंभीरता और प्रकृति के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं:
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आशय (Intention)
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ज्ञान (Knowledge)
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लापरवाही (Negligence)
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दुर्बल लापरवाही (Recklessness)
भारतीय संदर्भ में Mens Rea
भारतीय न्याय प्रणाली में Mens Rea को एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा गया है। हालाँकि, IPC (अब BNS) में 'Mens Rea' शब्द का उपयोग नहीं किया गया, परंतु इसके पर्यायवाची शब्दों जैसे "जानते हुए", "उद्देश्य", "इरादा", "दुर्भावना", "लापरवाही" आदि का व्यापक प्रयोग है।
BNS 2023 में Mens Rea का स्थान
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) ने पुराने अपराधों की पुनर्संरचना करते समय Mens Rea के महत्व को बनाए रखा है। निम्नलिखित धाराओं में Mens Rea स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है:
उदाहरण के रूप में:
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धारा 101 (हत्या) – "किसी व्यक्ति को मारने के आशय से जानबूझकर किया गया कार्य।"
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धारा 112 (गैर इरादतन हत्या) – लापरवाही या दुर्बल लापरवाही का परिणाम।
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धारा 116 (गंभीर उपेक्षा से मृत्यु) – मानसिक तत्व के रूप में लापरवाही।
इन धाराओं में मानसिक अवस्था जैसे आशय, ज्ञान, और लापरवाही को अपराध की संरचना में आवश्यक माना गया है।
Mens Rea का ऐतिहासिक विकास
Origin of Mens Rea:
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प्रारंभिक रोमन और कैनन कानून में ‘गिल्ट’ की अवधारणा मानसिक अवस्था से जुड़ी थी।
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कोक जैसे विधिशास्त्रियों ने ‘actus non facit reum nisi mens sit rea’ को कानूनी सिद्धांत के रूप में मान्यता दी।
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R v Alade (1837) में लार्ड अर्बिंजर ने माना कि यह सिद्धांत इंग्लिश विधि से भी पुराना है।
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भारत में यह सिद्धांत ब्रिटिश शासनकाल के दौरान IPC में समाहित हुआ और अब BNS में भी इसकी प्रतिध्वनि है।
न्यायिक दृष्टिकोण: भारतीय न्यायालयों में Mens Rea की व्याख्या
1. Tukaram S. Dighole v. Manikrao Shivaji Kokate (2010)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना दोषपूर्ण मानसिक अवस्था के कोई भी दंड नहीं दिया जा सकता।
2. State of Maharashtra v. Mayer Hans George (1965 AIR 722)
न्यायालय ने कहा कि किसी विशेष अधिनियम में Mens Rea आवश्यक नहीं माना जाए यदि अधिनियम विशेष रूप से ऐसा कहे।
3. Nathulal v. State of M.P. (AIR 1966 SC 43)
यह मामला एक लाइसेंस न होने के बावजूद खाद्य अनाज का भंडारण करने से जुड़ा था। आरोपी ने लाइसेंस के लिए आवेदन किया था और उसे विश्वास था कि उसे लाइसेंस मिल गया है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि चूंकि Mens Rea नहीं था, वह दोषी नहीं माना जा सकता।
Mens Rea और सांविधिक अपराध (Statutory Offences)
यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रत्येक अधिनियम में Mens Rea आवश्यक है?
द्वन्द्वपूर्ण विचारधाराएं:
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Presumption of Mens Rea –
Sherras v. De Rutzen (1895) में न्यायाधीश राइट ने कहा कि प्रत्येक अपराध में Mens Rea तब तक मानी जाएगी जब तक विधि कुछ और न कहे। -
Literal Interpretation –
Hobbs v. Winchester Corporation में न्यायाधीश कैनेडी ने कहा कि अधिनियम की भाषा स्पष्ट होनी चाहिए कि Mens Rea आवश्यक है या नहीं।
भारत में भी यह बहस चलती रही है, विशेषकर जैसे कि:
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Essential Commodities Act
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NDPS Act
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Prevention of Food Adulteration Act
इनमें कुछ अपराध ‘strict liability’ के अंतर्गत आते हैं, जहाँ Mens Rea की आवश्यकता नहीं होती।
Mens Rea की अनुपस्थिति में अपराध
कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिन्हें ‘strict liability’ offence कहते हैं – जैसे पब्लिक हेल्थ, सुरक्षा, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में।
उदाहरण के लिए:
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BNS 2023 में धारा 262 (दुर्घटनावश पर्यावरण को क्षति) – इसमें लापरवाही के आधार पर दंडनीयता निर्धारित है।
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मोटर वाहन अधिनियम के तहत भी कुछ उल्लंघन strict liability के अंतर्गत आते हैं।
विशेष परिस्थिति में Mens Rea के अभाव का प्रभाव
कुछ परिस्थितियों में Mens Rea का अभाव अपराध को शून्य कर देता है:
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न्यायोचित बचाव (Justification)
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मनोविकृति (Insanity)
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बचपन (Childhood) – BNS के अनुसार 12 वर्ष तक के बच्चों को विशेष छूट है।
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Zor-Zabardasti या coercion
Mens Rea भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली का अपरिहार्य तत्व है। किसी भी व्यक्ति को दंडित करने से पूर्व यह सिद्ध करना आवश्यक है कि उसने जानबूझकर या लापरवाही से अपराध किया।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में भी अधिकांश अपराधों के निर्माण में इस मानसिक तत्व को विशेष महत्व दिया गया है। न्यायपालिका द्वारा समय-समय पर इसकी व्याख्या ने यह सिद्ध किया है कि "दिमाग से अपराधी" होना, "हाथ से अपराध करने" जितना ही महत्वपूर्ण है।