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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 1: संपूर्ण विश्लेषण

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 1: संपूर्ण विश्लेषण और तुलना 1872 अधिनियम से

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 1: संपूर्ण विश्लेषण

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023) की धारा 1 अधिनियम की नींव रखती है। यह स्पष्ट करती है कि इस कानून का नाम क्या है, यह कहाँ लागू होगा, किन मामलों में नहीं लागू होगा, और इसे कब से प्रभावी माना जाएगा। यह नई व्यवस्था पहले लागू भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेती है और न्यायिक प्रक्रिया में आधुनिक दृष्टिकोण, खासकर डिजिटल साक्ष्य की भूमिका को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।

धारा 1: नामकरण और उद्देश्य

धारा 1 का पहला हिस्सा बताता है कि इस अधिनियम को "भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023" कहा जाएगा। यह नाम केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि अब भारत के पास एक नया, समसामयिक साक्ष्य कानून है जो पुराने कानून की जगह लेता है।

कहाँ लागू होगा?

यह अधिनियम भारत के सभी न्यायालयों पर लागू होगा – सत्र न्यायालय, जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय, और सर्वोच्च न्यायालय। एक बड़ा बदलाव यह है कि अब यह courts-martial (सैन्य न्यायालयों) पर भी लागू होता है, जो पहले 1872 अधिनियम से मुक्त थे। इससे न्याय प्रणाली में एकरूपता आएगी।

किन मामलों पर लागू नहीं होगा?

  • Affidavits (हलफनामे) पर लागू नहीं होगा।
  • Arbitration (मध्यस्थता) की कार्यवाहियों पर भी यह अधिनियम लागू नहीं होता।

यह छूट इसलिए है क्योंकि इन प्रक्रियाओं में साक्ष्य प्रस्तुत करने का तरीका पारंपरिक न्यायालयों से अलग होता है।

प्रभाव में लाने की तिथि

धारा 1 के अनुसार, अधिनियम तभी प्रभाव में आता है जब केंद्र सरकार इसकी अधिसूचना राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित करती है। यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और यह अधिनियम 1 जुलाई 2024 से पूरे भारत में लागू हो चुका है।

नवाचार और आधुनिक दृष्टिकोण

एक दिलचस्प बदलाव यह है कि अब इसमें “extends to whole of India” जैसा भौगोलिक उल्लेख नहीं है। इसका निहितार्थ यह है कि डिजिटल साक्ष्य, जो भारत के बाहर उत्पन्न हुए हैं, उन्हें भी इस अधिनियम के अंतर्गत माना जा सकता है। courts-martial को शामिल करना यह भी दर्शाता है कि अब सैन्य और नागरिक न्याय प्रणाली में समान साक्ष्य मानदंड होंगे।

📌 निष्कर्ष

धारा 1 केवल प्रस्तावना नहीं है; यह भारतीय न्यायिक प्रणाली में साक्ष्य के मूल्यांकन की नई दिशा तय करती है। यह अधिनियम आधुनिक भारत की न्यायिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है, और तकनीकी रूप से उन्नत तथा पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया की ओर एक बड़ा कदम है।


लेखक: SP Shahi, अधिवक्ता - इलाहाबाद उच्च न्यायालय

“Justice for All | Legal Expertise You Can Trust”

🌐 www.spshahi.com



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