डिक्री, विधिक प्रतिनिधि, सम्पत्ति, अवयस्क, धर्मोत्तर प्रयोजन, उन्नत कार्य की परिभाषा

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डिक्री,  विधिक प्रतिनिधि, सम्पत्ति, अवयस्क,  धर्मोत्तर प्रयोजन,  उन्नत कार्य  की परिभाषा
    
प्रश्न - निम्नलिखित को समझाइए-


(1) डिक्री, (2) विधिक प्रतिनिधि, (3) सम्पत्ति, (4) अवयस्क, (5) धर्मोत्तर प्रयोजन, (6) उन्नत कार्य ।

Q. Explain the following—

(1) Decree, (2) Legal representative, (3) Property, (4) Minor, (5) Religious purpose, (6) Improvement.

परिभाषाएं (toc)

 "डिक्री" (Decree) 


डिक्री का वही अर्थ है, जो डिक्री का कोड आफ सिविल प्रोसीजर, 1908 (दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908) में दिया गया है।

 विधिक प्रतिनिधि (Legal Representative) 


  विधिक प्रतिनिधि का वही अर्थ है जो कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर, (दीवानी प्रक्रिया संहिता) 1908 (1908 का 5) में विधिक प्रतिनिधि (Legal representative) को दिया गया है।

दीवानी प्रक्रिया संहिता में दी गई परिभाषा के अनुसार- "विधिक प्रतिनिधि का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति से है विधितः मृतक की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी है। इसमें वे व्यक्ति भी सम्मिलित हैं जो मृतक की सम्पत्ति का दावा करते हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रतिनिधि की हैसियत से कोई वाद दायर करता है या उसके विरुद्ध वाद दायर किया जाता है तो उसके मरने पर उसका उत्तराधिकारी भी सम्मिलित है।

अतः 'विधिक प्रतिनिधि' का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जो किसी मृतक व्यक्ति की सम्पत्ति या उसके किसी अंश का प्रतिनिधित्व करता है। [आन्ध्र बैंक लि. बनाम श्री निवास, A. I. R. 1962 S. C. 232] 

 सम्पत्ति (Property) 


सम्पत्ति का अध्याय 5 में तात्पर्य, आस्थानों से भिन्न संपति से है। [धारा 3 (20)]

अवयस्क (Minor) 


अवयस्क का अर्थ होता है जो वयस्क न हो। वयस्कता
की आयु 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर मानी जाती है। अतः ऐसा व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण न की हो अवयस्क माना जाएगा। यदि किसी व्यक्ति की सम्पत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स के संरक्षण में हो अथवा किसी अवयस्क का न्यायालय ने संरक्षक नियुक्त किया हो तो उसकी वयस्कता 21 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर ही मानी जाती है। उससे पूर्व वह अवयस्क ही रहता है।

धर्मोत्तर प्रयोजन (Religious Purpose) 


अधिनियम की धारा 3 (23) में

इसे वर्णित किया गया है। इसमें वह अभिप्राय सम्मिलित है जिसका सम्बन्ध धार्मिक उपासना, सेवा या धार्मिक संस्कारों के पालन से है। इस प्रकार, धार्मिक प्रयोजन धर्म तथा सम्प्रदाय के अनुसार भिन्न होता है। उदाहरणार्थ-मन्दिर, आदि धर्मोत्तर संस्था हैं।

 उन्नत कार्य (Improvement) 


उन्नत कार्य का तात्पर्य किसी ऐसे कार्य से है जिससे जोत के मूल में सारभूत वृद्धि हो जो कि उसके लिए उपयुक्त हो और ऐसे प्रयोजन से संगत हो जिसके लिए वह जोत धारण की गई हो तथा कोई ऐसा कार्य जो किसी जोत के लिए प्रत्यक्ष रूप से लाभकारी हो। उपरोक्त उपबन्धों के रहते हुए उन्नत कार्य में लिखित भी सम्मिलित हैं-

(1) तालाब, कुँआ, जलकार्य, तटबन्ध और कृषि प्रयोजनों के लिए जल भण्डारण, सम्भरण, या वितरण के अन्य कार्यों का निर्माण ।

(2) भूमि से जल निस्तारण के लिए बाढ़ से या कटाव से या जल जनित अन्य क्षति से भूमि के संरक्षण के लिए कार्यों का निर्माण । (3) वृक्षारोपण, भूमि का उद्धार, भूमि को साफ करना, घेरना, समतल या सीढ़ीदार उत्ताल बनाना ।

(4) आबादी या नगर क्षेत्र के अन्यत्र जोत में या उसके सामीप्य में जो कि

सुविधाजनक या लाभप्रद उपयोग के लिए अपेक्षित भवनों का परिनिर्माण । 
(5) पूर्ववर्ती किसी काम या नवीनीकरण या पुनर्निर्माण या उसमें परिवर्तन अथवा परिवर्धन करना ।

किन्तु उन्नत कार्यों में निम्नलिखित सम्मिलित नहीं है- 
(i) अस्थाई कुएँ का निर्माण,
(ii) ऐसा जलमार्ग, तटबन्ध, समतल किया जाना, घेरना या अन्य कर्म जो उस क्षेत्र में खेतिहर द्वारा कृषि के सामान्य क्रम में सामान्यतया किया जाता है, या 
(iii) ऐसा कोई कर्म जिससे किसी अन्य के अध्यासन में कहीं भी स्थित किसी भूमि के मूल्य में सारवान् कमी को जाय।  


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