लाभार्थी, दानोत्तर प्रयोजन, मण्डल, कलेक्टर, प्रतिकर आयुक्त, संहत क्षेत्र, संचित गाँव कोष, आस्थान, टुकड़ा, मध्यवर्ती, मध्यवर्ती का बाग, पट्टा, खान, नियत की परिभाषा

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 प्रश्न - निम्नलिखित की परिभाषा कीजिए-

(1) लाभार्थी, (2) दानोत्तर प्रयोजन, (3) मण्डल, (4) कलेक्टर, (5) प्रतिकर आयुक्त, (6) संहत क्षेत्र, (7) संचित गाँव कोष, (8) आस्थान, (9) टुकड़ा, (10) मध्यवर्ती, (11) मध्यवर्ती का बाग, (12) भूमि, (13) पट्टा, (14) खान, (15) नियत (16) गाँव, (17) गाँव सभा, (18) गाँव पंचायत, (19) भूमि प्रबन्धक समिति, (20) गाँव कोष, (21) ग्रामीण शिल्पी ।

UPZA Some Defined words

Q. Define the following-


(1) Beneficiary, (2) Charitable purpose, (3) Circle, (4) Collector, (5) Com- pensation Commissioner, (6) Consolidated area, (7) Consolidated Gaon Fund, (8) Estate, (9) Fragment, (10) Intermediary, (11) Intermediary's grove, (12) Land, (13) Lease, (14) Mine, (15) Prescribed.(16) Village, (17) Gaon Sabha, (18) Gaon Panchayat, (19) Land Management Committee, (20) Gaon Fund, (21) Village artisan.


प्रमुख परिभाषाएं(toc)

लाभार्थी (Beneficiary)

 अधिनियम की धारा 3 (1) में लाभार्थी को निम्नानुसार परिभाषित किया गया है-

“लाभार्थी” का तात्पर्य वक्फ, न्यास या विन्यास (endowment) के सम्बन्ध में ऐसे व्यक्ति से है जिसके लाभ के लिए वक्फ न्यास या विन्यास प्रयोग में लाया जाय।

उदाहरण

क किसी सम्पत्ति का अन्तरण ख को अ की शिक्षा के लिए करता है। इसमें क न्यासकर्त्ता है, ख न्यासधारी है तथा अ लाभार्थी होगा। इस प्रकार इस अधिनियम में दी गई लाभार्थी की परिभाषा भारतीय न्यास अधिनियम (Indian Trusts Act) से अधिक विस्तृत है।

दानोत्तर प्रयोजन (Charitable Purpose)

 अधिनियम की धारा 3(3) में इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

"दानोत्तर प्रयोजन" (Charitable Purpose) के अन्तर्गत ऐसे सभी प्रयोजन हैं। जिनका सम्बन्ध निर्धनों की सहायता, शिक्षा, चिकित्सा सम्बन्धी सहायता तथा सार्वजनिक उपयोगिता सम्बन्धी अन्य विषयों की, प्रोन्नति से हो, किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसे प्रयोजन नहीं हैं जिनका सम्बन्ध केवल धार्मिक उपासना, शिक्षा या सेवा अथवा धार्मिक कृत्यों के सम्पादन से हो।

मण्डल (Circle)

अधिनियम की धारा 3-क के अनुसार मण्डल का तात्पर्य ऐसे क्षेत्र से है जिसके लिए उ. प्र. पंचायतराज अधिनियम, 1947 के अधीन कोई गाँव सभा स्थापित की गई हो।

कलेक्टर (Collector )

 अधिनियम की धारा 3(4) में कलेक्टर को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

'कलेक्टर' (Collector) का तात्पर्य ऐसे अधिकारी से है जो उत्तर प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम, 1901 के उपबन्धों के अन्तर्गत कलेक्टर के रूप में नियुक्त हो और इसके अन्तर्गत प्रथम श्रेणी का ऐसा असिस्टेंट कलेक्टर भी है जिसे राज्य सरकार ने गजट में विज्ञप्ति द्वारा इस अधिनियम के अधीन प्राप्त कलेक्टर के सब या किसी कार्य के सम्पादन का अधिकार दिया हो।

प्रतिकर आयुक्त (Compensation Commissioner)

अधिनियम की धारा 3 (5) के अनुसार-

"प्रतिकर कमिश्नर" का तात्पर्य धारा 319 के अधीन नियुक्त प्रतिकर आयुक्त से है और उसके अन्तर्गत सहायक प्रतिकर आयुक्त भी है। (6) संहत क्षेत्र (Consolidated Area) - अधिनियम की धारा 3 (6K) के अनुसार-

"संहत क्षेत्र" का तात्पर्य ऐसे क्षेत्र से है जिसके सम्बन्ध में चकबन्दी की क्रिया समाप्त होने पर उत्तर प्रदेश जोत चकबन्दी अधिनियम, 1953 की धारा 52 के अधीन विज्ञप्ति प्रकाशित कर दी गई हो,

उ. प्र. जोत चकबन्दी अधिनियम, 1953 की धारा 52 के अनुसार जैसे ही नया नक्शा तथा अभिलेख तैयार कर दिए जाएं. राज्य सरकार सरकारी गजट में एक विज्ञप्ति जारी करेगी कि क्षेत्र विशेष में चकबन्दी का कार्य समाप्त हो गया है। विज्ञप्ति जारी हो जाने के पश्चात् यह संहत क्षेत्र हो जाता है। होरीसिंह बनाम नजीरा, 1965 R. D. 58 में यह अभिनिश्चित किया गया कि जब तक चकबन्दी का कार्य चलता रहता है तथा विज्ञप्ति जारी नहीं होती तब तक वह क्षेत्र संहत क्षेत्र नहीं कहलाता ।


संचित गाँव कोष (Consolidated Gaon Fund )

अधिनियम की धारा 3 के अनुसार संचित गाँव कोष से तात्पर्य धारा 125- क के अधीन संगठित संचित कोष से है। धारा 125 के के अनुसार-

धारा 125-क संचित गाँव कोष (1) प्रत्येक जिले के निमित्त एक संचित गाँव कोष संगठित किया जाएगा जिसमें- (क) धारा 124 की उपधारा (1) के परन्तुक में निर्देशित क्षतिपूर्ति या प्रतिकर की धनराशि, तथा (ख) उपधारा (2) के अन्तर्गत देय सभी अंशदान जमा किए जाएंगे।

(2) जिले की प्रत्येक गाँव पंचायत कलेक्टर को प्रतिवर्ष अपनी वार्षिक आय जो कलेक्टर द्वारा नियत रीति से निश्चित किया जाय और जो धारा 124 की उपधारा (1) के अन्तर्गत गाँव कोष में जमा की गई कुल धनराशि के 25 प्रतिशत से अधिक न होगा।

(3) इस धारा के अधीन संचित गाँव समाज कोष में रखे गए या रखे जाने के

लिए अपेक्षित समस्त धन उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1961 द्वारा इसका संशोधन किए जाने के पहले संचित गाँव कोष में संक्रमित हो जाएगा और उसमें जमा हो जाएगा।

(4) कोष का उपयोग निम्नलिखित में किया जाएगा-

(क) धारा 127-ख के अधीन नियुक्त पैनल के वकीलों के शुल्क और भत्तों का भुगतान,

(ख) इस अधिनियम के अधीन गाँव सभा अथवा भूमि प्रबन्धक समिति द्वारा अथवा उसके विरुद्ध वादों, प्रार्थना-पत्र अथवा अन्य व्यवहारों के संचालन तथा

अभियोजन के सम्बन्ध में किए गए व्ययों का भुगतान,

(ग) सार्वजनिक उपयोगिता की भूमियों के विकास पर किए गए व्ययों का भुगतान, और

(घ) अन्य किसी ऐसी धनराशि का भुगतान जिसे राज्य सरकार सामान्य अथवा

विशेष आज्ञा द्वारा कोष पर उचित रूप से भारित व्यय प्रख्यापित करे।

आस्थान (Estate)

अधिनियम की धारा 3(8) में आस्थान को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

आस्थान (Estate) का तात्पर्य ऐसे क्षेत्र से है और सदैव से माना जायगा, जो यू. पी. लैण्ड रेवेन्यू ऐक्ट, 1901 की धारा 32 के, जैसी कि वह इस अधिनियम के प्रचलित होने के ठीक पूर्व थी, खण्ड (ए), (बी) (सी) या (डी) में वर्णित किसी रजिस्टर के और जहाँ तक कि उसका सम्बन्ध दवामी (स्थाई) काश्तकार से है, खण्ड (ई) में वर्णित किसी रजिस्टर के अथवा खण्ड (ई) में वर्णित रजिस्टर के सम्बन्ध में उल्लिखित प्रतिबन्ध के अधीन रहते हुए उक्त एक्ट की धारा 33 के अधीन रखे गए किसी रजिस्टर के, अथवा उसी प्रकार के अन्य किसी रजिस्टर के जो किसी समय भी प्रचलित अधिकार अभिलेखों के तैयार करने व बनाए रखने से सम्बन्धित किसी भी अन्य अधिनियम, नियम, विनियम या आदेश में वर्णित हो अथवा उसके अधीन तैयार किया गया या रखा गया हो, किसी एक इन्दराज के अन्तर्गत हो, और उसमें किसी आस्थान के भाग अथवा उसके अंश का भी अन्तर्भाव है।

स्पष्टीकरण- इस खण्ड में अभिदिष्ट अधिनियम, नियम, विनियम या आदेश के अन्तर्गत उन विगत भारतीय राज्यों द्वारा बनाए गए या प्रख्यापित अधिनियम, नियम, विनियम या आदेश भी हैं जिनकी भूमि इस अधिनियम की धारा 4 के अधीन विज्ञापित निहित होने के दिनांक के पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य में विलीन या अन्तर्भूत हो गई थी।" ..

उच्चतम न्यायालय ने निर्णीत किया है कि जमींदारी उन्मूलन की अधिसूचना वैध है और मान्य है क्योंकि संशोधित धारा 3 (8) की परिभाषा में विवादग्रस्त क्षेत्र 'आस्थान' की परिधि में आते हैं तथा भूतलक्षी (retrospective) प्रभाव रखते हैं। [उत्तर-प्रदेश राज्य बनाम राजा आनन्द ब्रम्हशाह, 1967

टुकड़ा (Fragment) 

अधिनियम की धारा 3(8क) में टुकड़ा को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

"टुकड़ा" (Fragment) का तात्पर्य-

(क) निम्नलिखित में 18 हेक्टेयर (4.6875 एकड़) से कम भूमि से है-

(1) बुन्देलखण्ड

(2) इलाहाबाद, इटावा, आगरा तथा मथुरा के जिलों में यमुनापारी भाग,

(3) मिर्जापुर जिले का वह भाग जो कैमूर पर्वत श्रेणी के दक्षिण में है, (4) मिर्जापुर जिले की तहसील सदर के टप्पा अपराध और टप्पा चौरासी (बालाए पहाड़),

(5) मिर्जापुर जिले की तहसील राबर्ट समाज का वह भाग जो कैमूर पर्वत श्रेणी के उत्तर में स्थित, और

(6) मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील का परगना संकडशगढ़ और परगना अहरौरा और भागवत की पहाड़ी पट्टियों के गाँव जो अनुसूची 6 की सूची "क" और "ख" में उल्लिखित हैं, और

(ख) कुमायूँ डिवीजन को छोड़कर शेष समस्त उत्तर प्रदेश में 3.125 एकड़ से कम भूमि से है।

मध्यवर्ती (Intermediary)

अधिनियम की धारा 3(12) के अनुसार- "मध्यवर्ती" का तात्पर्य, जब उसका सम्बन्ध किसी आस्थान से हो, उक्त आस्थान या उसके किसी भाग के स्वामी (proprietor), मातहतदार (underproprietor), अदना मालिक (sub-proprietor), ठेकेदार, अवध के पट्टेदार दवामी या इस्तमरारी (permanent lessee in Avadh) और दवामी काश्तकार (permanent tenure holder) से है.

इसके अनुसार मध्यवर्ती में निम्नलिखित सम्मिलित हैं- (1) भू-स्वामी (2) उप भू-स्वामी, (3) मातहत स्वामी, (4) अवध का स्थाई ठेकेदार, (5) स्थाई जोतदार (6) इन पाँचों में से किसी की जमींदारी सम्पत्ति का ठेकेदार ।

मध्यवर्ती का बाग (Intermediary's Grove)  

अधिनियम की धारा 3(13) के अनुसार- मध्यवर्ती का बाग (Intermediary's grove) का तात्पर्य ऐसी बागभूमि से है जिसे कोई व्यक्ति मध्यवर्ती के नाते अपने अधिकार या अध्यासन में रखे हो :

भूमि (Land) 

 अधिनियम की धारा 3(14) के अनुसार- "भूमि" (land) का तात्पर्य धारा 109, 143 और 144 तथा अध्याय 7 को छोड़कर शेष अधिनियम में ऐसी भूमि से है जो किसी के अधिकार या अध्यासन (occupation) में कृषि, उद्यानकरण या पशुपालन जिसके अन्तर्गत मत्स्य संवर्द्धन (pisciculture) और कुक्कुट पालन (poltry farming) भी है, से सम्बन्ध रखने वाले किसी प्रयोजन से है

इस प्रकार इस अधिनियम के अन्तर्गत वे समस्त भूमि जिन पर कि कृषि बागवानी, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन या पशु-पालन होता है या इन प्रयोजनों से सम्बन्धित अभिप्राय के लिए धारण किया जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य बनाम श्रीमती सरजूदेवी, A. 1. R. 1977S. C. 2196] चौधरी सूरतसिंह बनाम पलटू, 1963R.D. 80 के बाद में यह अवधारित किया गया कि जो भूमि जानवर बाँधने, कोल्हू गाढ़ने, खलिहान लगाने, घूर एवं उपले रखने के लिए प्रयुक्त होती है, वे भी भूमि हैं, क्योंकि वे कृषि से सम्बन्धित अभिप्राय के लिए हैं।

यदि कृषि योग्य भूमि के किसी हिस्से को आबादी हेतु प्रयोग किया जा रहा हो. तो आबादी भूमि का वह भाग धारा 3 (IK) के अन्तर्गत भूमि खेती में नहीं आएगी। एवं ऐसे भाग के टुकड़े कृषिक अधिनियम की धारा 167 से प्रभावी नहीं होगा। [मै.. हिन्दुस्तान केबिल्स बनाम स्टेट आफ उ. प्र., 1990 आर. डी. 761] यदि कृषि योजन भूमि पर भूसा का विक्रय हो तो यह विनिश्चित किया गया कि उसका उपयोग कृषि कार्य हेतु नहीं हो रहा है श्रीमती पंचमुखी देवी बनाम श्रीमती शान्ति देवी, 1997


पट्टा (Lease)

शब्द पट्टा की परिभाषा इस अधिनियम में न करके धारा 3 (15) में निम्न उपबन्ध किया गया है-

"पट्टा" (lease) के अन्तर्गत, जब उसका सम्बन्ध खानों या खनिज पदार्थों से हो, शिकमी पट्टा (sub-lease), अन्वेषण पट्टा (prospecting lease), और पट्टा देने या शिकमी उठाने के अनुबन्ध (agreement) भी हैं और "पट्टेदार" की भी व्याख्या तदनुसार ही की जाएगी,

पट्टे की परिभाषा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 105 में इस प्रकार की गई है- "अचल सम्पत्ति का पट्टा सम्पत्ति उपयोगार्थ अधिकार का कुछ समय या शाश्वत के लिए किया गया ऐसा अन्तरण है जो दत्त या प्रतिज्ञापित मूल्य या धनराशि के, फसल के अंश के अथवा की गई सेवा के, या किसी अन्य मूल्यवान वस्तु के जो समय-समय पर या विनिर्दिष्ट अवसरों पर अन्तरणी द्वारा जो अन्तरण को ऐसी शर्तों पर ग्रहण करता है, अन्तरक को दी जानी या की जानी है, प्रतिफल के रूप में किया गया।"


खान (Mines)  

अधिनियम की धारा 3(17) के अनुसार-

“खान” (mine) का तात्पर्य ऐसी सभी खुदाइयों (excavations) से है जिनमें खनिज पदार्थों की खोज या प्राप्ति के लिए कोई कार्य (operation) किया गया हो, या किया जा रहा हो, किन्तु खान से सम्बन्ध रखने वाले कोई निर्माण, मशीनरी, ट्रामवे या साइडिंग (siding) उसके अन्तर्गत नहीं है और कोई खान तभी चालू समझी जाएगी जब उसके कार्य प्रारम्भ की नोटिस भारतीय खान अधिनियम (Indian Mines Act) 1923 की धारा 14 के अनुसार उस जिले के जिसमें वह खान स्थित हो, जिला मजिस्ट्रेट को दी गई हो और किसी समर्थ प्राधिकारी (competent authority) को उसके कार्य बन्द करने की सूचना न दी गई हो ।


 नियत (Prescribed ) 

धारा 3 (18) के अनुसार नियत से तात्पर्य इस अधिनियम के अधीन बने नियमों द्वारा नियत से है।  

गाँव (Village)  

अधिनियम की धारा 3 (25) के अनुसार, 'गाँव’ शब्द का तात्पर्य उस स्थानीय क्षेत्र से है जो कि तत्सम्बन्धी जिले के राजस्व अभिलेख (Revenue record) में गाँव के रूप में दर्ज हो। इसके अन्तर्गत वह क्षेत्र भी आता है। जिसको राज्य सरकार के गजट में एक गाँव के रूप में घोषित किया गया हो। राजस्व की सबसे छोटी इकाई गाँव है। हर एक गाँव की सीमाएँ होती हैं। राजस्व अधिकार अभिलेख गाँव के हिसाब से बनाए जाते हैं। गाँव के लिए आबादी होना आवश्यक नहीं है।

गाँव सभा (Gaon Sabha) 

 उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत गाँव सभा को परिभाषित किया गया । जिसके अन्तर्गत राज्य सरकार सरकारी गजट में अधिसूचना जारी करके 250 या इससे अधिक आबादी वाले गाँव को या दो या दो से अधिक को मिलाकर गाँव सभा की स्थापना करेगी। गाँव सभा में साधारणतया निवास करने वाले प्रत्येक 18 वर्ष की आयु वाले गाँव सभा के सदस्य होते हैं। गाँव सभा का एक प्रधान तथा उपप्रधान एक-एक निश्चित संख्या में सदस्य चुने जाते हैं। गाँव सभा एक निगमित संस्था (Body Corporate) मानी गई है।


गाँव पंचायत (Gaon Panchayat)

उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के अनुसार गाँव सभा की कार्यकारिणी समिति को गाँव पंचायत कहते हैं। गाँव सभा का प्रधान व उपप्रधान गाँव पंचायत का भी प्रधान व उपप्रधान होता है। गाँव पंचायत के सदस्यों का चुनाव गाँव सभा के सदस्यों में से ही होता है। प्रत्येक गाँव सभा के लिए पंचायत राज नियमावली में यथा विहित सदस्यों की संख्या होती है। 

भूमि प्रबन्धक समिति (Land Management Committee)

भूमि प्रबन्धक समिति गाँव सभा की एक समिति है, जिसको गाँव सभा की भूमि आदि का पर्यवेक्षण, प्रबन्ध, सुरक्षा एवं नियन्त्रण सौंपा गया है। गाँव सभा के प्रधान एवं उपप्रधान इस समिति के क्रमशः सभापति एवं उपसभापति होते हैं। गाँव सभा के क्षेत्र का लेखपाल पदेन इस समिति का मन्त्री (सेक्रेटरी) होता है। गाँव पंचायत के सब सदस्य इस समिति के सदस्य होते हैं। धारा 3(1-अ) के अनुसार, इस समिति का तात्पर्य उस समिति से है जिसकी स्थापना इस अधिनियम की धारा 122 के अन्तर्गत की गई है। इस धारा के अन्तर्गत प्रत्येक क्षेत्र के लिए एक 'भूमि प्रबन्धक समिति' की स्थापना राज्य सरकार के द्वारा गजट में प्रकाशित तिथि से होगी। समिति के अन्तर्गत, किसी गाँव पंचायत के क्षेत्र से उतने सदस्य चुने जाएंगे जितने कि समय-समय पर निर्धारित किए जाएं। यह समिति निर्धारित तिथि से गाँव सभा के नाम पर, गाँव की समस्त भूमि, गाँव की सीमा के भीतर विद्यमान समस्त जंगल, वृक्ष (जोत, बाग और आबादी के अतिरिक्त) मत्स्य-क्षेत्र, तालाब, जलमार्ग, हाट, बाजार, मेला, (जो कि अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत) गाँव-सभा में निहित हों की देखभाल, प्रबन्ध, सुरक्षा और नियन्त्रण करेगी।

गाँव कोष (Gaon Fund)

अधिनियम की धारा 124 के अनुसार- (1) गाँव सभा, गाँव पंचायत अथवा 'भूमि प्रबन्धक समिति' के द्वारा प्राप्त की गई सभी रकमें अब 'गाँव कोष' में जमा कर दी जाएंगी।

(2) वे सभी रकमें जो उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1961 के प्रारम्भ होने के पूर्व, गाँव सभा जन-निधि में रखी गई थीं, अब गाँव कोष में जमा कर दी जाएंगी।

प्रत्येक गाँव सभा के लिए एक गाँव कोष होता है। गाँव कोष का प्रशासन भूमि प्रबन्धक समिति के पास रहता है और उस पर तहसीलदार का नियन्त्रण रहता है। गाँव कोष की रकम तहसील के कोषागार में रखी जाती है। भूमि प्रबन्धक समिति की माँग पर तहसीलदार द्वारा गाँव कोष से पैसा निकाला जाता है।


ग्रामीण शिल्पी (Village Artisan)

ग्रामीण शिल्पी से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसके पास कोई भूमि न हो तथा जिसकी जीविका का मुख्य साधन इस प्रकार के परम्परागत यन्त्रों, उपकरण और अन्य वस्तु या सामान का निर्माण या मरम्मत करना है जिनका उपयोग कृषि या उससे अनुषंगी प्रयोजनों, के लिए किया जाय। इसमें कोई, बढ़ई, जुलाहा, कुम्हार, लुहार, रजतकार, स्वर्णकार, नाई, धोबी, मोची या इसी प्रकार का कोई अन्य व्यक्ति सम्मिलित है तथा जो स्वयं अपने श्रम से किसी शिल्प का व्यवसाय करके सामान्यतया अपनी जीविकोपार्जन करता है। 




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